कोड़ियों मै चली गई पीडब्लूडी की करोडो की दुकाने
प्रतीक खरे
छतरपुर / सरकारी मुलाजिमो की लापरवाही और मिली भगत से पिछले 30 साल मै लोकनिर्माण विभाग की करोडो रूपये कीमत की दो दर्जन से भी अधिक दुकाने कोड़ियों के भाव हजम कर लीं गई और विभाग के अधिकारी हाथ मलते रह गए | यदि अव भी नहीं चेते तों शेष बची दुकाने भी किराये दारो द्वारा हजम कर लीं जायेगी |
प्राप्त जानकारी के अनुसार चौक बाजार से लेकर छत्रसाल चौराहे के मध्य स्थिति दर्जनों दुकाने वर्षो पहले लोक निर्माण विभाग ने 20 रुपये से लेकर 40 रूपये तक के मासिक किराए पर आवटित की थी | शुरू शुरू मै तों सब कुछ ठीक ठाक रहा, दुकानदार समय-समय पर किराया जमा करते रहे, फिर जैसे जैसे विभाग के तत्कालीन अधिकारियों ने सुस्ती दिखाई दूकानदारो ने उन पर कब्जे करने शुरू कर दिए और किराया देना भी बंद कर दिया | सूत्र बताते हैं की विभाग ने 2013-14 मै जैसे ही दुकानों का किराया बढ़ाने की कबायद शुरू की वैसे ही दुकानदारो ने दुकाने खाली करने और किराया बढ़ाने की बजाय हाई कोर्ट की शरण लेना शुरू कर दिया,बताया जाता हैं की विभाग के अधिकारियों ने कोर्ट मै अपना पक्ष रखना भी उचित नहीं समझा परिणाम स्वरूप 75 फीसदी दुकानदार कोर्ट से केश जीत गए और लोक निर्माण विभाग की सम्पत्ती के मालिक बन गए | विभाग के अधिकारियों ने इतने लम्बे समय तक क्यों आँखे बंद रखी?और क्यों कोर्ट मै अपना पक्ष नहीं रखा?यह गंभीर जांच का विषय हैं | सूत्र बताते हैं की अभी भी कुछ दूकानदारो के मामले हाईकोर्ट मै लंबित हैं और आज नहीं तों कल उन्हें भी कोर्ट से मालिकाना हक़ मिलना तय हैं | लोक निर्माण विभाग की जिस प्रॉपर्टी को किराएदार हड़प कर गए उसमे से अधिकास प्रॉपर्टी चौक बाजार के इर्द गिर्द स्थिति हैं | सब जानते हैं की चोकबाजार छतरपुर का ह्रदय स्थल हैं यहां एक छोटी दुकान की कीमत करोडो मै हैं फिर यहाँ तों लोकनिर्माण विभाग की दुकाने तीन चार मंजिल तक की हैं
विभाग के पास नहीं हैं दस्तावेज
लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन अधिकारियों ने इस प्रॉपर्टी को खुर्द वुर्द कराने मै अहम् भूमिका निभाई और दुकान दारो से हुए ऐग्रीमेंट के दस्तावेज तक गायव करा दिए | जव इस संबंध मै लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री श्री शुक्ला से बात कर बस्तु स्थिति जानने का प्रयास किया तों चौकाने बाला खुलासा हुआ | श्री शुक्ला ने बताया की जो दुकानदार कोर्ट से केस जीत गए उस प्रॉपर्टी के कोई भी दस्तावेज विभाग के पास उपलब्ध नहीं हैं | उन्होंने बताया की विभाग के पास सिर्फ एक रजिस्टर हैं जिसमे किरायेदार का नाम और किराये की राशि लिखी हुई हैं | उन्होंने बताया की मालिकाना हक और किरायेदार के बीच हुए करार के कागज़ भी विभाग के पास रही हैं |
