सिविल सर्जन की जिम्मेदारी लेने कोई तैयार नहीं
-प्रतीक खरे
छतरपुर / पिछले एक सप्ताह से जिला चिकित्सालय मै सिविल सर्जन का पद रिक्त हैं, फिलहाल आस्थाई व्यवस्था के तौर पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ आरपी गुप्ता इस पद को संभाले हुए हैं | बडा सवाल हैं की आखिर डॉ गुप्ता कब तक दो दो पद संभालेंगे | सरकार आखिर क्यों इस पद पर किसी योग्य अधिकारी को पदस्थ नहीं कर रही | भोपाल मै वैठे अधिकारी 12 दिन तक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर भी किसी की नियुक्ति नहीं कर पाए थे | अव सिविल सर्जन को भी निलंवित हुए एक सप्ताह हो गया हैं, भोपाल के अधिकारी यहां भी किसी की तैनाती नहीं कर पाए आखिर क्यों ?
सूत्र बताते हैं की छतरपुर जिला चिकित्सालय की व्यवस्थाएं पटरी से उतरी हैं चारो और दलालो और भ्रष्टाचार का बोलवाला हैं जिसे कावू मै लाना आसमान से तारे तोड़ने के समान हैं | सरकार चाहती हैं की जिला चिकित्सालय से ही किसी योग्य और सीनियर डॉ को सिविल सर्जन की जवाबदारी सौपी जाए पर कोई भी डॉक्टर अस्पताल मै व्याप्त गंदगी को साफ करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हैं जिस कारण सिविल सर्जन के पद की ताज़पोसी अटकी पड़ी हैं | अत्यंत गोपनीय सूत्रों के हवाले से मिली खवर के अनुसार भोपाल स्तर के अधिकारियों ने जब लोकल डॉक्टरो की नवज़ टटोली तों पता चला कोई भी डॉक्टर इस पद पर वैठने के लिए तैयार नहीं हैं | और एक एक कर डॉ संगीता चौवे, डॉ राजेश जैन, डॉ आर के वर्मा, डीएचओ डॉ प्रजापति, डॉ शरद चौरसिया, डॉ व्ही के शर्मा, डॉ विनीत पैटेरिया, डॉ शरद मिश्रा, डॉ शंजना रोविंशन साफ तोर पर हाथ खड़े कर चुके हैं | लाख टके का सवाल यह हैं की क्या छतरपुर के डॉक्टरो के कंधे इतने कमजोर हैं की वे इस जिम्मेदारी का बोझ नहीं उठा सकते या फिर प्रेक्टिस इतनी तगडी हैं की उससे फुर्सत नहीं मिलती |
जनप्रतिनिधियो का मोन व्रत
स्वास्थ्य विभाग के मामले मै जनप्रतिनिधियों का लगातार मोनव्रत चल रहा हैं | स्वास्थ्य सेवाये प्रभावित हो वाधित हो, विभाग अच्छा काम करें या बुरा, मरीज लुटे पिटे कुछ भी हो हमारे जिले के माननीय हमेशा मौनव्रत मै रहते हैं उनकी चुप्पी पर सवाल उठना लाजमी हैं | 12 दिन तक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का पद खाली पड़ा रहा, हफ्ते भर से सिविल सर्जन का पद खाली हैं पर किसी भी जनप्रतिनिधि ने हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं किया | करे भी क्यों उनके तों एक फोन पर डॉ दौड़े दौड़े उनके घर पहुंच जाते हैं भुगतना तों जनता को हैं |
