12/08/2025

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जो सत्य और सुख को पाट दे वही है कपट : डॉ प्रभु जी, जीवन में काम नहीं राम की प्रधानता हो यही सच्चा धर्म, भागवत कथा का दूसरा दिन

लखन लाल असाटी
छतरपुर/ तिरोड़ा, श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन डॉ प्रभुजी गौतम ने महात्मा आत्मदेव उनकी पत्नी धुंधली, पुत्रों धुंधकारी और गोकर्ण की कथा की तात्विक विवेचना करते हुए कहा कि आत्मदेव ही आत्मा है, धुंधली कुबुद्धि है, धुंधकारी पाप है और गोकर्ण सद्बुद्धि। कलह प्रिया धुंधली ने अपने पति आत्मदेव के साथ कपट करते हुए संतान के लिए ऋषि द्वारा दिया गया फल अपनी बहन की सलाह पर गाय को खिला दिया, गर्भवती होने का नाटक करते हुए अपनी बहन के पुत्र को अपना पुत्र बताया, जिसका नामकरण भी उसने कुल पुरोहित से करने की जगह खुद धुंधकारी रखा, डॉ प्रभु जी ने कहा कि नामकरण आधार संस्कार है इसलिए यह ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मणों द्वारा ही किया जाना चाहिए, आधुनिक संस्कृति पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति तो तमसो मा ज्योतिर्गमय की है जिसमें दीपक जलाकर कार्य का शुभारंभ करते है ना कि मोमबत्ती बुझाकर।
सात्विक श्रद्धा की प्रतीक धेनु से जन्मे गोकर्ण ने प्रेतयोनि प्राप्त अपने भाई धुंधकारी की मुक्ति के लिए श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया, कथा समापन पर भगवान के पार्षद विमान लेकर मात्र धुंधकारी को लेने आये जबकि कथा सुनने वाले श्रोता अनेक थे, गोकर्ण के प्रश्न का समाधान करकरते हुए पार्षदों ने कहा कि कथा में तो सब बैठे थे पर कथा किसी-किसी में बैठ रही थी, कथा श्रवण के साथ-साथ मनन और चिंतन भी जरूरी है,
परलोक धन नहीं धर्म जाएगा
डॉ प्रभु जी ने कहा कि वेदांत की दृष्टि से व्यक्ति अकेला आया है और अकेला ही जाएगा, शरीर भी उसका अपना नहीं है, एक छोटी सी दुर्घटना से बहुत कुछ बदल जाता है, वेद के अनुसार आचरण ही धर्म है और वेद के विपरीत आचरण अधर्म, गीता में स्पष्ट कहा गया है कि संसार के समस्त विकारों को छोड़कर प्रभु की चरण शरण ही परम धर्म है, लौकिक व्यवहार को धर्म मान लेने की जगह श्रेष्ठ जनों की संगत से धर्म पुष्ट होता है, बुझा दीपक भी जले दीपक के समीप जाने पर प्रदीप्त हो जाता है, धर्म के विभिन्न प्रकल्पों में सेवाकार्य भी महत्वपूर्ण धर्म है। उन्होंने कहा कि परलोक धन नहीं धर्म जाएगा इसलिए अभी धन से धर्म को विनिमय कर लीजिए, जीवन में काम नहीं राम की प्रधानता हो जाए यही सच्चा धर्म है।
पुराणों का तिलक और परमहंसों की संहिता है भागवत
डॉ प्रभुजी ने कथा श्रवण की महत्ता बताते हुए कहा भगवान श्री कृष्ण कथा के माध्यम से हमारे हृदय प्रदेश में प्रवेश कर हमारा मन ही मंदिर बना देते हैं। विरक्तों के लिए गीता पर्याप्त है पर गृहस्थों के लिए भागवत का अपना महत्व है, यहां तक की बैकुंठ में भगवान है पर भागवत नहीं, श्रीमद् भागवत में मूल कथा के पहले उसकी महत्ता का वर्णन किया गया है और आदि मध्य अंत में तीन बार मंगलाचरण का विधान है, भागवत पुराण वेद रूपी कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है जिसे रसाल की संज्ञा दी गई है।
बाल्य काल में देवर्षि नारद द्वारा चातुर्मास में ऋषियों से श्रीमद् भागवत कथा श्रवण, सर्पदंश से माता के निधन फिर अगले जन्म में ब्रह्मा के पुत्र बनने और भगवान विष्णु द्वारा वीणा प्रदान करने की कथा सुनते हुए डॉ प्रभु जी ने कहा कि नारद जी की ही तरह हमें शरीर रूपी वीणा का उपयोग भागवत भजन में करना चाहिए।
शस्त्र और शास्त्र का उपयोग राष्ट्र धर्म के निर्वाह में हो
महाभारत के विभिन्न प्रसंगों की कथा सुनाते हुए भागवत उपासक डॉ प्रभुजी गौतम ने कहा कि शस्त्र और शास्त्र का उपयोग व्यक्तिगत अहंकार के स्थान पर राष्ट्रधर्म के निर्वाह हेतु होना चाहिए, आचार्य द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का गलत उपयोग किया जिस कारण भगवान श्री कृष्ण को उसे निर्मूलन करना पड़ा, भगवान श्री कृष्ण ब्रह्मास्त्र से गर्भस्थ शिशु परीक्षित को बचाने के लिए उत्तरा के गर्भ में कुछ दिन ठहर गए, भक्त और भगवान के एक साथ गर्भ में रहने की यह अद्भुत कथा है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में युद्ध नहीं बुद्ध की प्रधानता है, झगड़े का सही समाधान तो समझदारी ही है,पर जब कोई और रास्ता ना बचे तो राष्ट्र, प्रजा और संस्कृति की रक्षा के लिए युद्ध की भी तैयारी रहे, महाभारत युद्ध की समाप्ति पर युधिष्ठिर द्वारा व्यामोह में सम्राट बनने की अनिच्छा जताने पर पितामह भीष्म सरसैया पर लेटे-लेटे ही उन्हें राजधर्म का उपदेश देते हैं, राजा के लिए दानशील, राजधर्म का पालक, प्रजा के मोक्ष हेतु कल्याणकारी, नारी सम्मान, भक्त होना आदि गुण बताए।

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