छतरपुर शहर के लिए लाइफ लाइन हैं 4 तालाब और दो तलैयां, समृद्ध अतीत व सुखद वर्तमान के गवाह हैं छतरपुर के तालाब
संजय सक्सेना
छतरपुर। पूर्वकालिक रजवाड़ी रियासती क्षेत्र के रूप में ख्याति प्राप्त छतरपुर शहर के तालाबों में चंदेल काल की सुखद स्मृतियां शेष हैं। यहां के 4 तालाब व दो तलैयां प्राचीन समृद्ध अतीत व सुखद वर्तमान के गवाह हैं। जो छतरपुर शहर के लोगों के लिए लाइफ लाइन भी हैं।
छतरपुर शहर में चंदेल व बुंदेला शासकों ने जगह जगह जल संरचनाओं का निर्माण कराया। वर्तमान में जिले में एक सैकड़ा से अधिक तालाब हैं। छतरपुर शहर में इस समय 4 तालाब व दो तलैयां प्रमुख हैं, जिनके बंधान पर मंदिर भी हैं। ये तालाब यहां के समृद्ध अतीत की सुखद स्मृतियों के रूप में गौरवशाली विरासत को सहेजे हैं। शहर के प्रमुख तालाब में सर्वोपरि है प्रतापसागर तालाब, इसे बड़े तालाब के रूप में जाना जाता है। इस तालाब का निर्माण छतरपुर के राजा प्रताप सिंह ने सन 1846 में कराया था। तालाब के बंधान पर प्रतापेश्वर मंदिर भी उन्हींने बनवाया था। जिसे वर्तमान में नमर्देश्वर मंदिर के रूप में जाना जाता है। दूसरा प्रमुख तालाब रावसागर तालाब है, जिसे वर्तमान में संकटमोचन तालाब के रूप में जाना जाता है। इस तालाब का निर्माण राव हिम्मत राय कायस्थ ने वर्ष 1736 में कराके तालाब के बंधान पर संकट मोचन मंदिर का निर्माण कराया। शहर के मध्य स्थित किशोर सागर तालाब का निर्माण राजा प्रताप सिंह ने पन्ना के राजा किशोर सिंह के नाम से कराया था। दरअसल राजा प्रताप सिंह वर्ष 1832 में पन्ना के राजा किशोर सिंह के संरक्षक बनाए गए थे। चौथे तालाब के रूप में ग्वालमगरा तालाब परमार शासन काल में बनवाया गया, जो एक निस्तारी सुंदर तालाब है। इसके अलावा प्रतापसागर तालाब के पश्चिम में रानी तलैया खास है। इसी तरह सांतरी तलैया भी राजशाही जमाने की यादों को संजोए हुए है।
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पानी-रोटी है तो मानव का ठहराव है के सिद्धांत पर बनाये गये तालाब
इतिहास पर नजर डालें तो राजसी काल के पहले बुंदेलखंड का यह दक्षिणी भूभाग मात्र जंगल व चारागाह के रूप में अविकसित क्षेत्र था। जहां भी पानी ग्रीष्म ऋतु तक नदियों, नालों में ठहर जाता तो लोग वहां अस्थायीतौर के बगैर टपरे, झोपड़ियाँ बनाकर रहते और पशु पालकर किसी तरह जीवकोपर्जन करते थे। जब जल समाप्त हो जाता तो लोग अन्य जलस्रोत तलाश कर वहां जाकर बस जाते थे। उस समय इस अंचल के लोगों का जीवन पूरी तरह से घुमंतू था। जब यहां चंदेल राजाओं ने साम्राज्य स्थापित किया तो उन्होंने पानी है तो रोटी है और पानी, रोटी है तो मानव का ठहराव है के सिद्धांत पर पहाड़ों एवं टौरियों की पटारों से बरसाती धरातलीय जल के प्रवाह को रोकने के लिए तालाब निर्माण कराये। इन तालाबों में जल थमा तो क्षेत्र के लोगों का घुमंतु जीवन भी थम गया और बस्तियां बसने लगीं। छतरपुर नगर की स्थापना वर्ष 1707 ईसवी के बाद महाराजा छत्रसाल बुंदेला ने की थी। तभी से घीरे धीरे नगर का विकास भी हुआ। इसके बाद यहां के बुंदेला, परमार एवं पड़िहार राजाओं एवं जागीरदारों ने तालाब निर्माण कराने के मानवीय कार्य को आगे बढ़ाया।
