मौन इंद्रिय विश्राम नहीं अपितु आत्म संयम है:संत श्री मैथिलीशरण भाई जी
बुंदेलखंड ट्रांसपोर्ट के पुराने गेराज में भक्ति के स्वरूप पर राम कथा का तीसरा दिन
छतरपुर। श्री रामकिंकर विचार मिशन के संस्थापक संत श्री मैथिली शरण भाई जी ने कहा कि वाणी का मौन तो मात्र इंद्रिय विश्राम है , आत्म संयम ही मौन है, मिथिला में धनुष भंग के बाद परशुराम जी का लक्ष्मण जी से संवाद की तात्विक विवेचना मौन को सही अर्थों में परिभाषित करती है, जहां बोलना है वहां बोले, जहां चुप रहना है वहां चुप रहे है,यही आत्म संयम मौन है, जो लक्ष्मण जी के चरित्र में दिखाई देता है,लोगों को बहिरंग दृष्टि से बहुत अधिक बोलने वाले बहुत अधिक क्रोध करने वाले लक्ष्मण जी महाराज दिखाई देते हैं वस्तुत: वह रामचरितमानस के सबसे बड़े मौनी है, क्रोध और अधिक बोलना तो परशुराम जी के स्वभाव में दिखाई देता है जबकि लक्ष्मण जी महाराज के सारे उत्तर तत्वज्ञ ज्ञान से ओतप्रोत है,
संत श्री मैथिलीशरण जी ने इस प्रसंग की गहरी व्याख्या करते हुए कहा कि परशुराम जी ने जनक जी की सभा में भगवान श्री राम को देखा तो उनके नेत्र थके के थके रह गए, जनक जी की पुष्प वाटिका में सीता जी ने पहली बार भगवान श्री राम को देखा तो उनकी भी यही स्थिति हुई,पर उन्होंने भगवान को अपने हृदय में स्थापितअपनी पलके बंद कर ली थी,
थके नयन रघुपति छवि देखें।
पलकन्हिहू परिहरीं निमेषें॥
लोचन मग रामहिं उर आनी।
दीन्हे पलक कपाट सयानी॥
परंतु परशुराम जी ने ऐसा नहीं किया वस्तुत: अखंड को देख लेने के बाद खंड-खंड को देखने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी पर उन्होंने भगवान को देख लेने के बाद भी खंड-खंड धनुष को देखा और इतने अधिक क्रोधित हुए कि परम ज्ञानी जनक जी महाराज को मूर्ख कह कर संबोधित किया
रामहि चितइ रहे थकि लोचन।
रूप अपार मार मद मोचन॥
सुनत बचन फिरि अनत निहारे।
देखे चापखंड महि डारे॥
अति रिस बोले बचन कठोरा।
कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा॥
मैथिलीशरण जी ने कहा कि यहां परशुराम जी स्वरूप विस्मृति के तथा लक्ष्मण जी स्वरूप स्मृति के प्रमाण है, संसार के लोग भी प्राय: आंखें फाड़ कर वह देखना चाहते हैं जिसे उन्हें देखने की जरूरत ही नहीं है, लक्ष्मण-परशुराम संवाद को ईंट का जवाब पत्थर से बताने वाले लोग वस्तुतः अपनी बुद्धि को आरोपित करते हैं यथार्थ तो कुछ और ही है, अवतार होने के बावजूद भी परशुराम जी के ज्ञान चक्षु के सामने अज्ञान के बादल आ गए थे, जैसे सूर्य के सामने बादल आ जाने पर होता है वस्तुत: सूर्य न तो उदय है और न ही अस्त, वह तो परम प्रकाशक है, यह तो हमारे देख पाने की सीमा मात्र है, लक्ष्मण जी के मौन का अद्भुत उदाहरण पुष्प वाटिका में देखने मिलता है जब सीता जी को देख लेने के बाद भगवान श्री राम लक्ष्मण जी से सीता जी के रूप का वर्णन कर रहे है तब लक्ष्मण जी एक शब्द भी नहीं बोलते पूरी तरह मौन रहते हैं कि उन्हें सुनने के लिए प्रभु सीता जी से दूर न हो जाए, परशुराम जी जाते-जाते प्रभु राम के साथ-साथ लक्ष्मण जी से क्षमा मांगते हैं भाई जी ने कहा कि अधिक और अनर्गल बोलने वाले से क्या कोई क्षमता मांगेगा, भाई जी ने शत्रुघ्न, उर्मिला, मांडवी श्रुतकीर्ति के मौन का भी वर्णन किया
संसार की मानसिक पूजा करने वालों को नींद नहीं आती
सुमेरु पर्वत पर कागभूसुंडी जी की भक्ति का वर्णन करते हुए मैथिलीशरण जी ने कहा कि वह पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान, पाकर के नीचे जप-यज्ञ, बट के नीचे हरि कथा और आम के नीचे मानस पूजा करते हैं, पीपल के पत्ते मन की तरह बहुत अधिक हिलते हैं पर उसका तना बहुत अधिक मजबूत होकर मूल से जुड़ा रहता है, यहां ध्यान का आशय यह है कि मन की जगह मूलाधार में स्थापित हो जाइए, पाकर के पत्ते बहुत सघन होते हैं जो विभिन्न विक्षेप से बचाने के प्रतीक हैं जो जप में सहायक बनता है, बट के नीचे हरि कथा से आशय कथा में बहुत शाखाएं निकलती हैं पर वह सभी शाखाएं बट वृक्ष की जड़ों की तरह ईश्वर रूपी मूल से जोड़ देती है, मानस पूजा भी आम की तरह रसमय होती है, भाई जी ने कहा कि संसार में गुण दोष के चिंतन में तो मन लगता है, पर भगवान में नहीं, संसार की मानसिक पूजा करने वालों को नींद नहीं आती है भगवान के चरणों का स्मरण कर उनकी मानसिक पूजा कीजिए आपको अच्छी नींद आएगी, गोपी गीत उद्धव गोपी प्रसंग की व्याख्या करते हुए भाई जी ने कहा कि गोपियों का भगवान के प्रति प्रेम देखकर परम ज्ञानी उद्धव जी भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं कि अभी तक वह आपके भक्त थे अब गोपियों के भक्त हो गए हैं और उनके चरण कमल की सेवा करना चाहते हैं, कालिया नाग हमारे जीवन के अहंकार का प्रतीक है भगवान उसके एक फन को कुचलते है तो वह अहंकार रूपी दूसरे फन को ऊपर उठा लेता है, भाई जी ने कहा कि जहां भक्त कागभुसुंडि जी रहते हैं वहां सौ योजन तक अविद्या का नाश हो जाता है पर जहां अहंकार रूपी कालिया नाग रहता है वहां के आसपास का जल विषैला हो जाता है, भगवान सबके अहंकार को तोड़ते हैं।
