12/10/2025

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हे पार्थ, अब तो गांडीव धारण करो!

– रामकिशोर अग्रवाल
अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध और धर्म की रक्षा के लिए पार्थ ने जब गांडीव धारण किया तो उनके अचूक निशाने से सब त्राहिमाम करने लगे।
महाभारत में पार्थ यानि अर्जुन ने अनीति के विरुद्ध नीति का जो जयघोष किया था क्या हम अपने पार्थ से यह उम्मीद नहीं कर सकते। 365 दिन में उन्होंने बुंदेली धरा और बुंदेलखंड की संस्कृति, संस्कार समझ कर जनमानस का मन पढ़ ही लिया होगा।
वीरों की भूमि और ऐतिहासिक गुलाबी नगरी में पले-बढ़े पार्थ जैसवाल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में आकर देश और समाज की व्यवस्थाएं दुरुस्त करने का जो प्रण किया था उसे पूरा करने का अवसर उन्हें पहली बार कलेक्टर बन कर महाराजा छत्रसाल की वीर भूमि छतरपुर में आकर प्राप्त हुआ है। वे सख्त प्रशासक के तौर पर अपनी छवि बनाने के साथ एक संवेदनशील इंसान भी दिखाई दिए हैं। जिले के मुखिया आए दिन व्यवस्थाएं पटरी पर लाने के लिए अफसरों के साथ कड़क बन कर पेश आते दिखे जरूर लेकिन व्यवस्था में दीमक की तरह लगे लापरवाह अधिकारियों, कर्मचारियों पर कोई फर्क पड़ा हो, ऐसा दिखाई नहीं देता। कहते भी हैं कि जब तक अपना घर ठीक न हो, दूसरे का घर आप कैसे ठीक करेंगे। आप भी भली भांति जानते होंगे कि आम आदमी को अपने सही काम के लिए सरकारी अधिकारी, कर्मचारी किस तरह चक्कर कटवाते हैं। अध्ययनकाल में यह अनुभव निश्चित रूप से आपको भी अवश्य हुआ होगा। वही ढर्रा आज भी चल रहा है। जबकि गलत काम करवाने में किसी को कभी कोई दिक्कत नहीं होती। ऐसे में आम आदमी को उम्मीद की किरण सिर्फ और सिर्फ कलेक्टर में नजर आती है। यदि लोगों की समस्याएं पंचायत, जनपद स्तर पर हल हो जाएं तो वे क्यों जिला मुख्यालय तक दौड़ लगाएं। सब टालमटोल करते रहते हैं। आपने यह अच्छा काम किया कि खुद पूरे जिले के अमले को ब्लॉक स्तर पर ले जाकर समस्याएं सुनने लगे हैं पर यह समस्या का हल नहीं है। लोगों की समस्याएं ब्लॉक स्तर पर ही सुलझना चाहिए इसके लिए ब्लॉक स्तर के अमले को हिदायत दें। हां जिला स्तर की समस्या आपके पास आना वाजिब है। आप अपनी तरह हर अधिकारी, कर्मचारी को संवेदनशीलता और इंसानियत का पाठ पढ़ा नहीं सकते तो उन्हें सख्त से सख्त सजा देकर संवेदनशील होने को मजबूर तो कर ही सकते हैं। आपने सख्ती दिखाई तो है लेकिन अभी और सख्त होने की दरकार है। छतरपुर जिला कृषि प्रधान है। यहां ज्यादातर किसान, मजदूर हैं जो किसी तरह अपना पेट पाल रहे हैं। यदि उन्हें छोटी- छोटी परेशानियों के लिए कलेक्टर के दर पर मत्था रगड़ना पड़े तो इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या होगी?
किसान को समय पर खाद, बीज मिले, सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिले तो छतरपुर जिला कृषि उत्पादन में नंबर वन बन सकता है। अफसोस ये है कि बौनी के समय डीएपी और सिंचाई के दौरान यूरिया खाद मिलती तक नहीं। किसान को जो समय खेतों में देना होता है उस समय वह खाद की कतारों में खड़ा दिखाई देता है। पिछले एक साल में आप भी यह सब देख चुके हैं। उम्मीद है कि आइंदा ऐसा मंजर देखने को न मिले। वैसे भी इस साल बारिश भरपूर होने से रवि की फसल का बंपर उत्पादन तभी होगा जब पहले से पर्याप्त रासायनिक खाद की उपलब्धता हो। जब खेत लहलहाएंगे तो निश्चित ही बाजारों में भी रौनक रहेगी।
देश, प्रदेश, जिला, ब्लॉक, पंचायत और गांव हर जगह विकास हुआ है और नए-नए काम चल रहे हैं। लेकिन इन कामों में इतनी गड़बड़ी होती है कि कह नहीं सकते। एक रुपए का काम होता है तो उसमें आधे से ज्यादा राशि का बंदरबांट हो जाता है। अब भला विकास कैसे होगा। जिले की क्या बात करें जिला मुख्यालय छतरपुर में ही सड़कों, नाले, नालियों को देख लीजिए। पिछले साल जिन सड़कों की रिपेयरिंग हुई वे साल बीतने के पहले ही चिथड़े-चिथड़े उड़ गईं। कहने को ज्यादा बारिश होने का बहाना है और बहाने बनाने में जाता क्या है? दाल में नमक तो चलता है पर इतना भयंकर भ्रष्टाचार अक्षम्य है। छतरपुर में चंदेलकालीन तालाबों की भरमार है लेकिन हालत ये हो गए हैं कि शहर के नालों, नालियों का दूषित पानी इनमें जहर घोल रहा है। अतिक्रमण तो काफी पहले से है ही। बारिश में जब ये तालाब लबालब भर कर उफान मारने लगे तो अतिक्रमण बिना चश्मे के दिख गया। फिर भी इन अतिक्रमणकारियों पर कोई चाबुक नहीं चलता। शहर के नाले संकरे हो गए क्यों कि इन नालों पर बिल्डिंगे खड़ी है। इसीलिए तो शहर में हुई बारिश का पानी सड़कों पर सैलाब की तरह बह गया। इसलिए नोटिस-नोटिस खेलने की बजाए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
आपने हाईवे से आवारा जानवरों को हटाने का फरमान कई बार सुनाया पर अफसोस हालत जस के तस हैं। हाईवे पर और शहर में इन्हीं आवारा जानवरों की वजह से आए दिन होने वाले हादसों में तमाम लोग काल के गाल में समा रहे हैं। हालांकि इसमें रफ ड्राइविंग भी उतनी ही जिम्मेदार है।
उद्योगविहीन छतरपुर जिले के लोगों को रोजगार का अवसर देने और किसानों को लाभ दिलाने के मकसद से सिंगापुर के एक एनआरआई ने जिले में बड़ा उद्योग लगाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन अफसरशाही के चक्कर में यह बड़ा उद्योग भी हाथ से फिसलता दिखाई देने लगा है। केन बेतवा लिंक परियोजना इस क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी साबित होने वाली है। भोपाल-लखनऊ हाईवे भी विकास में अहम भूमिका निर्वाह करेगा। इसके भू अर्जन का काम भी लेट लतीफ न हो, इतना तो आप कर ही सकते हैं। छतरपुर जिले की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए संजीवनी बूटी के रूप में बन रहे मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य अवश्य तीव्र गति से चल रहा है, पर निर्धारित समयावधि में इसके भी पूर्ण होने के आसार नहीं है। इस पर भी ध्यान दिया जाना समय का तकाजा है।
छतरपुर जिले का आम जन मानस उम्मीद करता है कि अब पार्थ को गांडीव धारण कर ही लेना चाहिए। तभी सरकार और लोगों की मंशा पूरी होगी और आपका नाम भी छतरपुर जिले के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
मेरे जुनू का नतीजा जरूर निकलेगा,
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा।

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