वैश्विक पर्यावरण कार्यक्रम के तहत् बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ, दो दिवसीय कार्यशाला में सांझा किए गए जमीनी अनुभव
छतरपुर। जीईएफ एवं एसजीपी इंडिया द्वारा वैश्विक पर्यावरण सुविधा के लघु अनुदान कार्यक्रम के तहत् जिले की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं ने पहले निर्जीव और बंजर हो चुकी खेती की जमीन को उपजाऊ बनाने, परम्परागत खेती की तकनीकी में परिवर्तन करने जैसे तमाम काम करके पहले बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया और फिर एक स्थानीय होटल में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में अपने जमीनी अनुभव को एक-दूसरे के साथ सांझा किया।
भारत सरकार की प्रमुख योजना जीईएफ एवं एसजीपी इंडिया के अंतर्गत ज्ञान प्रबंधन एवं संचार पर अनुभव सांझा करने के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस दो दिवसीय कार्यशाला में पहले दिन जमीनी स्तर से सीखना और क्षेत्रीय अनुभवों को एक-दूसरे के साथ सांझा किया गया। दर्शना महिला कल्याण समिति के नेतृत्व में यह आयोजन संपन्न हुआ। जिसमें क्षेत्रीय रणनीतियों, लक्ष्य उपलब्धियों और पर्यावरर्णीय एवं सामाजिक आर्थिक प्रभाव के प्रमाणों पर सहभागी चर्चाएं हुईं। जिसमें सीएसएआर परिदृश्य में विभिन्न सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपनी-अपनी सीख सांझा कीं। दूसरे दिन ज्ञान प्रबंधन और संचार पर क्षमता निर्माण के विषय को लेकर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस महत्वपूर्ण रणनीति भूमिका में जीईएफ एसजीपी इंडिया के राष्ट्रीय समन्वयक मनीष पांडे, वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र अग्रवाल, प्रतीक खरे, क्षेत्रीय समन्वयक संजीव कुमार पैनेलिस्ट के रूप में उपलब्ध रहे। संस्था की बेटा और संचार सलाहकार सुश्री आतिरावाशुदेवन ने बकालत, लांमबंदी और प्रभाव प्रबंधन के लिए सहभागी संचार और कहानी कहने को शक्तिशाली उपकरण के रूप में रेखांकित किया। डॉ. सुस्मिता मिश्रा ने केस स्टडी लिखना फोटो निबंध तैयार करना और वीडीयो दस्तावेजीकरण पर प्रकाश डाला। डॉ. रंजन कर्माकर ने प्रदर्शन और प्रशिक्षण विधियों को समझाया। कार्यशाला का संचालन डॉ. सुमित्रा मित्रा और डॉ. धीमानदेव शर्मा द्वारा किया गया।
ज्ञात हो कि शासन की उक्त महत्वपूर्ण योजना पर क्षेत्रीय सामाजिक संस्थाओं ने छतरपुर जिले के ग्राम सलैया, पाटन, कावर, मतीपुरा में न सिर्फ मेंढबंधान किया बल्कि निर्जीव जमीन को उपजाऊ बनाने की दशा में महत्वपूर्ण काम किया। संस्थाओं ने पर्यावरण की दृष्टि से सोलर इंनर्जी को बढ़ावा देने प्लांटेशन करने से लेकर वनोपज का व्यवस्थित तरीके से कैसे उपयोग किया जाए यह जानकारी ग्रामीण स्तर पर जाकर वनोपज पर निर्धारित ग्रामीणों के बीच में चर्चा कर उन्हें महत्वपूर्ण सुझाव दिए और ग्रामीण क्षेत्रों में खेत-तालाब का निर्माण करवाया।
