विशेष टिप्पणी : छतरपुर अस्पताल-और फाइटर डॉक्टर
-प्रतीक खरे
शानदार बिल्डिंग और अत्याधुनिक संसाधनों से लेस जिला चिकित्सालय “नाम बड़े और दर्शन थोड़े” कहावत को चरितार्थ कर रहा हैं | यहां के डॉक्टर चिकित्सीय विधा मै कितने पारंगत हैं यह तों नहीं पता पर वे फाइटिंग बिधा मै परफेक्ट हैं और पूर्ण कुशलता हासिल किये हैं इसमें कोई संदेह नहीं | वे इस कुशलता की वानगी मरीजो के परिजनों पर लात घूसो की बौछार कर यदा कदा पेस भी करते रहते हैं | अटेंडरो पर अपनी मर्दानगी दिखाने बाले डॉक्टर केवल और केवल जिला चिकित्सालय मै ही पाए जाते हैं | जिले के अन्य अस्पतालो मै इस विधा के डॉक्टरो का टोटा हैं | मजेदार यह हैं की इन बे-लगामो के सामने पार्थ के गाण्डीव से निकले तीर भी निस्तेज हो जाते हैं | डाक्टरो ने एक पखबाड़े मै दूसरी बार अटेंडर के साथ हाथा पाई कर हम नहीं सुधरेंगे का नारा बुलंद कर दिया और चुनौती भी दे दी की जिस मै दम हो हमें सुधार कर बताये |
“जस राजा तस प्रजा”तों सभी ने सुना होगा, यह भी जगजाहिर हैं की यदि राजा कमजोर और लप्पू झिन्ना होगा तों सेना उदण्ड हो जाती हैं | जिला चिकत्सालय की दुर्दशा के पीछे का कारण भी सेना पति का अत्यधिक कमजोर होना बताया जाता हैं | जूनियरटी और सीनियरटी भी एक बड़ी बजह हैं | चूकी सिविल सर्जन काफी जूनियर हैं जिस कारण सीनियर डॉक्टर उनके आदेशों को हवा मै उड़ा देते हैं | सुना तों यहां तक गया हैं की फोर्थ क्लास कर्मचारी भी जिंग्गा लाला की हुक्मउदूली कर देते हैं | इतने कमजोर और मैनेजमेंट की सिफ़र नॉलेज बाले डॉक्टर को छतरपुर जैसे बड़े अस्पताल की कमान लम्बे समय तक सोपे रखने का मतलव या तों राजनैतिक तिया पांच हो सकता हैं या आर्थिक ?
जब भी अस्पताल परिसर से मारपीट या उपद्रव की खवर आती हैं तों उस उस धधकती न्यूज़ पर यह कह कर ठंडा पानी उडेल दिया जाता हैं की मरीज के परिजन अपना पेसेंट दिखाने के लिए उतावले हो रहे थे | यक्ष प्रश्न यह हैं की नौगांव, विजावर, बडामालहरा, लवकुशनगर आदी आदी अस्पतालो मै अटेंडर उत्तेजित क्यों नहीं होते ? उनकी सारी उत्तेजना जिला अस्पताल मै ही क्यों उबाल मारती हैं ? कुछ तों गड़बड़ हैं जिसे मोहन के पार्थ को पकड़ना होगा, समझना होगा,और अस्पताल की दुर्दसा को सुधारना होगा, क्योंकि यहाँ बो व्यक्ति इलाज कराने आता हैं जिसकी जिंदगी यही के इलाज पर निर्भर हैं हालांकि हमारे जिला चिकित्सालय मै पदस्थ धरती के भगवान् रिफर मै भी मास्टरपीस, वे मरीज को ठीक करके नहीं रिफर करके भी वाह वाही लूट लेते हैं | उनमे इलाज का गूदा भले ना हो, पर गले मै फसे कैथे के गूदे बाले पेसेंट को रिफर करके भी अपनी पीठ थप थपा लेते हैं |
