माता-पिता का पूजन करते ही भर आई आँखें, मातृ-पितृ पूजन दिवस में झलके सनातनी संस्कार
छतरपुर। शुक्रवार 14 फरवरी को जब पाश्चात्य संस्कृति में जकड़े लोग प्रेम का इजहार करने वैलेंटाइन डे मना रहे थे तब बाघराजन मंदिर के पीछे स्थित संत आशाराम बापू आश्रम में भारतीय संस्कृति के अनुरूप माता पिता के प्रति अपने सम्मान और प्रेम का इजहार करने इस दिन को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में पूरी श्रद्धा और उत्साह से मनाया गया।

माता पिता का पूजन करते समय कई लोगों की आंखों में आस्था और सम्मान के आंसू भर आए। लोगों की भीड़ इतनी बढ़ी कि आश्रम के भव्य सभागार में जगह कम पड़ जाने पर अन्य लोगों को नील गगन के तले सजाए गए पंडाल में अपने माता पिता का पूजन करना पड़ा।
आश्रम के कार्यकर्ता मनीष अग्रवाल ने बताया कि लोगों को पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से बचाने के उद्देश्य से संत आशाराम बापू ने 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की थी। इसके पहले हमारा युवा समाज इस दिन को वैलेंटाइन डे के रूप में मनाकर राह से भटक रहा था। माता, पिता और उनके बच्चों के लिए पूजन सामग्री से लेकर प्रसाद तक की व्यवस्था आश्रम की ओर से की गई थी।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र अग्रवाल और रामकिशोर अग्रवाल द्वारा दीप प्रज्जवलन और आशाराम बापू के चित्र पर माल्यार्पण के साथ प्रारंभ कार्यक्रम में आयोजन समिति द्वारा पूरे वैदिक रीति रिवाज से माता पिता का पूजन कराया गया। बच्चों ने अपने माता और पिता का तिलक लगाकर, माल्यार्पण कर और चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने के साथ ही अपने माता पिता की आरती उतारी। इस दौरान लोग इतने भाव विह्वल हो गए कि बुजुर्गों को भी अपने माता पिता की याद में नम आंखे भरे और सिसकते देखा गया। माता पिता ने अपने बच्चों को गले लगाकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया। आश्रम प्रबंधन की ओर से सभी को प्रसाद की व्यवस्था की गई थी।
कार्यक्रम में समाजसेवी हरि प्रकाश अग्रवाल ने सभी को संबोधित कर इस आयोजन की सराहना की। उन्होंने कहा कि माता पिता का पूजन करना हमारी संस्कृति है और ऐसे आयोजन संस्कृति की जड़ें और मजबूत करते हैं।
