ऐसी होती है दृढ इच्छा शक्ति
– सुरेन्द्र अग्रवाल
पुलिस अधीक्षक अगम जैन की दृढ़ इच्छाशक्ति ने वह करिश्मा कर दिखाया जिसको नामुमकिन व असंभव माना जा रहा था। पिछले करीब तीन दशक से छतरपुर नगर के गांधी चौक के मैदान पर अवैध रूप से कब्जा कर सड़क तक फल-फूल की ठिलिया वालों ने स्थाई तौर पर डेरा जमा लिया था। यहां तक कि इन ठिलिया के कारण बाजार जाने वाले अपने दो पहिया वाहन भी वहां खड़े नहीं कर सकते थे। वोट बैंक की राजनीति ने हमारे सियासतदां के मुंह पर ताले लगा दिए थे। चौराहे से लगी राम गली बजरिया भी भगवान भरोसे थी। कतिपय दुकानदारों की आपसी प्रतिस्पर्धा और हठधर्मिता ने पैदल निकलना मुश्किल कर दिया था।
हमारा शहर जो तीन लाख की आबादी को ढो रहा है।उसका कोई माई-बाप नहीं है।पूरा शहर ही अराजकता का शिकार है। कोई गली मुहल्ला ऐसा नहीं है, जहां पर दो पहिया वाहन चालक आसानी से निकल सकें।हर गली में दुकानें और गोदाम बना दिए गए हैं। मकानों के आगे जबूतरे, फिर उसके बाद नालियों का निर्माण कर नगरपालिका प्रशासन ने स्वयं गलियों को तंग करने की खूली छूट दे दी है। किसी भी जिम्मेदार के पास नगर को व्यवस्थित रूप देने की कोई कार्य योजना नहीं है।
पुलिस अधीक्षक ने गांधी चौक पर जन संवाद कार्यक्रम आयोजित कर नगरवासियों पर उपकार किया है।इसी जन संवाद का परिणाम नगरवासियों के सामने है। मैंने गुरुवार को गांधी चौक पर एक घंटा व्यतीत किया।
यह वही स्थान है जहां पर सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। बड़े बड़े नेताओं ने इसी स्थान पर भाषण दिए।जन आंदोलन की रुपरेखा यहीं से शुरू हुआ करती थी। कालांतर में यहां पर एक चबूतरे का निर्माण किया गया था।
यातायात पुलिस और सिटी कोतवाली पुलिस वर्तमान में इस चौराहे पर सतत् निगरानी रख रही है लेकिन थोड़ी और सुधार की आवश्यकता है। पुलिस प्रशासन को चाहिए कि सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक इस चौराहे को पूरी तरह से ठिलिया मुक्त करने की आवश्यकता है। अभी चाय नाश्ते से की एक दो ठिलिया लोहे के एंगल के अंदर प्रवेश कर रहीं हैं।इसी चौराहे से गोवर्धन टाकीज के लिए जाने वाले पहले से सक्रींड़ रास्ते पर एक दुकानदार करीब 6 फिट तक सामान फैलाकर एवं टेबिल लगा कर रास्ते को अवरूद्ध करने में अपनी भूमिका निभा रहा है।उसे तरीके से समझाने की आवश्यकता है।
नगर की यातायात व्यवस्था बनाए रखने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना आवश्यक है। गांधी चौक की तरह एक एक क्षेत्र को व्यवस्थित रूप देने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया जा सकता है। किसी भी शहर की आन-बान और शान में बस स्टैंड की बढ़ी भूमिका होती है। किसी समय क्षेत्रफल की दृष्टि से छतरपुर का बस स्टैंड पूरे मध्यप्रदेश में अग्रणी था लेकिन आज उतना ही बदसूरत हो गया है। यहां पर मुसाफिरों के लिए बनाए गए प्रतिक्षालय में फुटपाथियों ने कब्जा कर लिया है। बसें अव्यवस्थित रूप से खड़ी होती हैं। यहां पर केवल दबंगों का राज चलता है। चारों तरफ ठिलिया वाले कब्जा किए हैं। एक पत्रकार के नाते देश के विभिन्न स्थानों पर आवागमन रहता है। इतना बदसूरत बस स्टैंड कहीं पर नहीं है। अन्य स्थानों के बस स्टैंड पर एक भी ठिलिया नजर नहीं आती है। आज इतना ही।
शेष अगली किश्त में।
