12/08/2025

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तहसील में रोज बढ़ रहा नामांतरण की फाईलों का ढेर, नियम में 58-59 की नकल का कोई प्रावधान नहीं: आदित्य सोनकिया

छतरपुर। तहसीलदार की मनमानी और स्वविवेक के चलते तहसील कार्यालय में नामांतरण के लिए आई फाईलों का ढेर दिन प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है और सैकड़ों क्रेता न्याय पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। पिछले कई सालों से छतरपुर तहसील में नामांतरण के लिए वर्ष 1943-44 वर्ष 1958-59 को रिकार्ड संलग्न करना अनिवार्य किए जाने के चलते सैकड़ों जमीन खरीददारों का मालिकाना हक उन्हें नहीं मिल पा रहा है। पूर्व के तहसीलदार 1943-44 के खसरे की नकलें मांगते रहे और अब वर्तमान तहसीलदार रंजना यादव वर्ष 1958-59 के रिकार्ड के आधार पर ही नामांतरण करने की जिद पकड़े हुए हैं। भू-अभिलेख विभाग के अधीक्षक आदित्य सोनकिया कहते हैं कि भू राजस्व संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि नामांतरण के लिए 1958-59 का रिकार्ड देखा जाए उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि नामांतरण करने से पूर्व तहसीलदारों को स्वविवेक का अधिकार है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इसी स्वविवेक का फायदा उठाकर छतरपुर तहसील कार्यालय में पदस्थ तहसीलदार जमीन और प्लाट के खरीददारों को लगातार परेशान कर रहे हैं जबकि इसी छतरपुर जिले में और भी तहसीलें हैं जहां के तहसीलदारों ने कभी भी इस स्वविवेक का फायदा नहीं उठाया। अधीक्षक भू-अभिलेख आदित्य सोनकिया का कहना है कि शासन की जमीन का संरक्षण करना प्रत्येक राजस्व अधिकारी का कर्तव्य है और यदि कोई नामांतरण निरस्त किया जाता है तब फिर उस जमीन के संपूर्ण भाग को शासन दर्ज कर दिया जाना चाहिए ताकि भूमि विक्रेता अन्य किसी को जमीन का विक्रय न कर सके और यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो यह भूमि विक्रेता को लाभ पहुंचाना होगा। बताते चलें कि गत 20 दिसम्बर को तहसीलदार रंजना यादव ने एक ही दिन में लगभग साढ़े 7 सौ फाईलों का निराकरण कर दिया था जिनमें से नामांतरण के 80 प्रतिशत प्रकरण खारिज किए गए थे। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था और सागर से आये एक जांच दल ने निरस्त की गई कुछ फाईलों को जप्त भी कर लिया था। हालांकि अब तक यह ज्ञात नहीं हो सका है कि जप्त की गई फाईलों पर जांच अधिकारियों ने क्या कार्यवाही की है।
अब एक बार फिर छतरपुर तहसील कार्यालय में नामांतरण के लिए आई फाईलों का पहाड़ बनना शुरू हो गया है मजेदार बात यह है कि जिले के सारे राजस्व अधिकारी यह जानते हैं कि 1958-59 की नकल की आड़ में हितग्राहियों को केवल परेशान किया जाता है इस प्रकार का कोई नियम नहीं है फिर भी सारे राजस्व अधिकारी तहसीलदार रंजना यादव की मनमानी के आगे बौने होते दिखाई दे रहे हैं।

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