कोर्ट का आदेश आने से पहले ही 102 साल पुराना स्कवेश कोर्ट जमींदोज
छतरपुर। मेला ग्राउण्ड में स्थित महाराजा क्लब का सहायक स्कवेश कोर्ट पिछले दिनों अतिक्रमण के नाम पर जमींदोज कर दिया गया। इस भवन के स्वामित्व का मामला वर्तमान में 2010 से उच्च न्यायालय जबलपुर में विचाराधीन है। न्यायालय ने 2015 के बाद से इस मामले में फाईनल सुनवाई को लंबित रखा हुआ है। लोग उच्च न्यायालय से आदेश आने की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि अचानक नगरपालिका का बुल्डोजर गरजा और देखते ही देखते 102 साल पुराना स्कवेश कोर्ट जमींदोज हो गया।
महाराजा क्लब और महाराजा स्कवेश कोर्ट का बहुत पुराना इतिहास है। वर्ष 1923 में महाराजा भवानी सिंह जू देव के जन्मदिवस के मौके पर तत्कालीन महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव ने खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से महाराजा क्लब और स्कवेश कोर्ट की स्थापना कराई थी। यह भवन भवानी सिंह जू देव की माता डांगर महारानी की संरक्षण में फला-फूला और यहां खेल व मनोरंजन की गतिविधियां शुरू हुईं। प्रारंभ में इस क्लब और स्कवेश कोर्ट का नाम राजा बहादुर टेनिस क्लब हुआ करता था। 1931 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के देहावसान के बाद इसका नाम बदलकर महाराजा क्लब कर दिया गया और 1937 में स्कवेश कोर्ट का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। सूत्र बताते हैं कि 1939 में अंगे्रस सरकार के समय उनके पॉलिटिकल एजेंट ने स्वयं आकर इस स्कवेश कोर्ट की गतिविधियों को देखा था। 1946 तक इस क्लब में छतरपुर राज्य के कर्मचारी अनिवार्य रूप से सदस्य रहते थे और उनकी वेतन से सदस्यता का शुल्क काटा जाता था। स्वतंत्रता के बाद शहर के अन्य गणमान्य नागरिकों को भी इस स्कवेश कोर्ट की सदस्यता दी जाना प्रारंभ की गई। वर्तमान में जो महाराजा क्लब के नाम से जाना जाता था अब वह जैन समाज की आस्था का केंद्र बन गया है और उसके ठीक नजदीक स्थित स्कवेश कोर्ट कुछ दिनों पहले तक महाराजा भवानी सिंह जू देव के जन्मदिन की याद दिलाता था। महाराजा क्लब और स्कवेश कोर्ट की संरचनाओं पर जैन समाज ने अपना दावा किया और मामला न्यायालय में पहुंच गया। छतरपुर न्यायालय के न्यायाधीश योगेशचन्द्र गुप्त ने 13.4.2002 को दिए गए अपने फैसले में इसे महाराजा क्लब की संपत्ति घोषित किया था। लम्बी लड़ाई के बाद जैन समाज ने उच्च न्यायालय में अपील की और तब से लेकर आज तक यह मामला उच्च न्यायालय जबलपुर में लंबित है। 2015 के बाद से उच्च न्यायालय जबलपुर ने इस मामले में कोई सुनवाई नहीं की केवल अंतिम फैसले के लिए यह मामला लंबित था। लोगों को अंतिम फैसला आने का इंतजार था लेकिन नगरपालिका और प्रशासनिक अमले ने न्यायालय का फैसला आने से पहले ही मेला ग्राउण्ड में स्थित प्राचीन स्कवेश कोर्ट को जमींदोज कर दिया।
