विशेष टिप्पणी: पुलिस का जनचर्चाओ पर पूर्ण विराम
प्रतीक खरे
गाँधी जी के तीन बंदरो वाली बात लगभग सभी ने बचपन मै ही पढ़ लीं होंगी जो ना बुरा देखते है, ना बुरा सुनते हैं,ना बुरा बोलते हैं, छतरपुर पुलिस ने टीआई आत्महत्या केश मै इसी थ्योरी पर काम किया, बस थोड़ा शब्दार्थ पलट दिए | टीआई कुजूर की आत्म हत्या की खवर जितनी तेजी से आग की तरह फैली उससे चौगनी स्पीड के साथ आत्म हत्या के कारणों की अफवाहै भी फैली | पर हमारी पुलिस ने ना अफवाहे, जन चर्चाये सुनी, ना देखी, ना उन अफवाहो और जन चर्चाओ पर भरोसा किया | करना भी नहीं चाहिए क्योंकि यदि पुलिस हवा मै तैरती इन जन चर्चाओ वा अफवाहो पर भरोसा कर लेती तो उसके लिए अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी पटकने जैसी स्थिति बन जाती, और लोग ऊँगली उठाने लगते की वरिष्ठ अधिकारियों की नाक के नीचे ढ़ेड साल से यह सब चल रहा था और अधिकारियो को कानो कान भनक तक नहीं लगी,इसलिए सीधे दो लोगो एक युवक और एक युवती पर मामला दर्ज किया और उन्हें जेल भेज कर सारी की सारी जनचर्चाओ,अफवाहो पर पूर्ण विराम लगा दिया |
बात बात पर पत्रकार वार्ता कर खुद “अपने मुँह मिया मिठ्ठू”बनने, अपनी पीठ खुद थप-थपाने का शगल रखने बाली पुलिस ने इस हाई प्रोफ़ाइल सुसाइट मामले मै पत्रकारो के तीखे सवालो से बचने के लिए पत्रकार वार्ता भी आयोजित नहीं की | क्या इस मामले के खुलासे को पुलिस अपनी उपलब्धि नहीं मानती..? शायद नहीं ! यदि मानती होती तो पत्रकार बार्ता आयोजित कर खबर नवीसो को लम्बा चोडा प्रेस नोट थमाती, यह भी बताती की पुलिस ने इस मामले के खुलासे के लिए कितना पसीना बहाया, कितनी टीमे बनाई और कहा कहा छापेमारी की | अव नहीं बताया तो नहीं बताया ऐ पुलिस की मर्जी हैं,पुलिस अपनी मर्जी से काम करती हैं उसकी कार्यशैली मे जन भावनाओ वाला स्थान हमेशा रिक्त ही रहता हैं | हो सकता हैं अब आगे भी छोटी छोटी रोजमर्रा की कार्यवाहियो पर अपनी पीठ थप थपाने वाली पत्रकार वार्ताओ से पुलिस बचे ? मुझे तो यकीन हैं की उच्च माप दंड स्थापित करने के लिए उसे बचना ही होगा |
रुस्तम पुरुष्कार विजेता कुजूर की मौत से केबल पुलिस विभाग ही दुखी नहीं था आम जनता भी आहात थी,इसका उदाहरण पुलिस लाइन मै आयोजित श्रद्धांजलि सभा मै भी देखा गया था यहाँ पुलिस के आलावा भी बड़ी संख्या मै लोग उपस्थित थे |मीडिया रिपोटों और चौक चौराहो से जो चर्चाये निकल कर मुक्त आकाश मै तैर रही थी, जरुरी नहीं की बो सब की सब सच हो!उनमे से कुछ मिर्च मसाले मै लिपटी भी होंगी,हमारे बुंदेलखंड के बुजुर्ग कहते हैं की “विना धजी के सांप नई बनत” यदि सांप बना हैं तो धजी तो होंगी ही होंगी इसमें कोई संसय नहीं | पर सारी जन चर्चाओ को शिरे से खारिज कर देने से पुलिस की जांच और कार्यवाही पर सवाल उठना लाजमी हैं, और लोग सबाल उठा रहे हैं उन्हें कोई सवाल उठाने से कोई रोक भी नहीं सकता, यदि उन अफवाहो को भी जांच परख लिया जाता तो लोगो का भरोसा पुलिस पर और अधिक पुख्ता हो जाता | जो नहीं हुआ,कई गंभीर जन चर्चाये आज भी लोगो के दिलो मे धधक रही हैं, उनका दिमाग सोच सोच कर चकरघिन्नी वन रहा हैं | बोल चाल की भाषा मै कहे तो दिमाग़ का दही केवल बो अफवाहे बना रही है जो लोगो ने आँखे से देखी हैं कानो से सुनी हैं, और रुस्तम पुरुष्कार विजेता की कार्यशैली मै महशूस की हैं |
