पसंद के पीछे आदतें एक जैसी हैं अथवा विचार: लखन लाल असाटी
छतरपुर, हम एक दूसरे को पसंद करते हैं पर इसका आधार क्या है सिर्फ रहन-सहन और खानपान की आदत मिल जाना पसंद है अथवा हमारे विचार भी मिल रहे हैं, यह गंभीर मुद्दा है जिस पर खासकर युवा पीढ़ी को ध्यान दिए जाने की जरूरत है, राज्य आनंद संस्थान के मास्टर ट्रेनर लखनलाल असाटी ने स्थानीय गवर्नमेंट गर्ल्स पीजी कॉलेज में आनंद सभा के दौरान छात्रों से संवाद करते हुए यह बात कही, इस कार्यक्रम के आयोजन में प्रिंसिपल डॉ शशी प्रभा सिंह, हिस्ट्री की सहायक प्राध्यापक डॉ नीरज निरंजन होम साइंस की अतिथि विद्वान डॉ राजश्री सिसोदिया व डॉ कनुप्रिया चौबे का सहयोग रहा,
आनंद सभा के दौरान मैं और मेरा शरीर दोनों वास्तविकताओं को अलग-अलग समझने का प्रयास किया गया, दोनों की आवश्यकताओं और क्रियायो पर भी छात्राओं का ध्यान गया, शारीरिक क्षमताएं अलग-अलग हो सकती हैं पर मैं की क्षमता सबकी एक जैसी है, मैं की क्रिया के रूप में जो कल्पनाशीलता चलती है वह सभी में एक जैसी है जिसके आधार पर हम अपनी योग्यता का आकलन भी कर सकते हैं और उसको बढ़ा भी सकते है,,अभी हम अपने कुछ शरीर मान बैठे हैं इसीलिए खुद की क्षमता पर संदेह करते हैं, लखन लाल असाटी ने 30 सेकंड तालियां बजाकर छात्राओं का ध्यान उनकी कल्पना शीलता में खुद की योग्यता के आकलन की ओर आकृष्ट कराया, छात्राओं ने स्वीकार किया कि वह अपनी क्षमताओं का आकलन कम कर रही हैं वस्तुतः वह अधिक क्षमतावान है, छात्रा मोहिनी साहू, दीक्षा पटेल, प्रिया खटीक, सविता अहिरवार आदि ने अनेक प्रश्नों के माध्यम से अपनी जिज्ञासा का समाधान किया, लखन लाल असाटी ने कहा कि अभी हम एक्साइटमेंट और आवेग को ही अपना आनंद मान बैठे हैं, इसीलिए दोस्तों के साथ बर्थडे मनाने के बाद केक खाने की जगह उसको मुंह पर मलते हैं, यदि केक मुंह पर मलाणा ही आनंद होता तो फिर इसे हम अपने माता-पिता के सामने घर पर क्यों नहीं मलते हैं,
