फालोअप: धीरे-धीरे खुलने लगी सरस्वती सदन में हुए घोटाले की परतें
छतरपुर। शहर के चर्चित सरस्वती सदन पुस्तकालय पब्लिक ट्रस्ट में हुए घोटाले की परतें अब धीरे-धीरे खुलना शुरू हो गई है। ट्रस्ट से जुड़े तमाम असंतुष्ट सदस्य भी अब खुलकर लापरवाही के किस्से सुनाने लगे हैं। यदि इस घोटाले की गंभीरता से और ईमानदारी से जांच हुई तो निश्चित ही सार्वजनिक हित की संपत्ति में बड़े बंदरबांट का खुलासा हो सकता है।
गौरतलब है कि शहर के बीचों-बीच मुख्य मार्केट में स्थित सरस्वती सदन पुस्तकालय पब्लिक ट्रस्ट की संपत्ति को ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने मनमाने तरीके से खुर्द-बुर्द किया है। इस मामले की बिंदुवार और तथ्यात्मक शिकायत वर्ष 2011 में की गई थी लेकिन अधिकारियों ने शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन अब अचानक इस मामले की जांच करने के आदेश कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने दिए है। जिला कोषालय अधिकारी विनोद कुमार श्रीवास्तव एवं अनुविभागीय दण्डाधिकारी अखिल राठौर को जाँच सौंपी गई है। दोनों ही अधिकारी मिलकर इस मामले की जांच करेंगे। हालांकि 4 दिन बाद भी अभी जांच शुरू नहीं हो सकी है।
आठ साल से नहीं खुला पुस्तकालय
सरस्वती सदन पुस्तकालय पब्लिक ट्रस्ट के नाम पर ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने लाखों रूपए की किताबें बनारस जाकर खरीदी अब वह पुस्तकें अलमारियों में कैद है और पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रही है। जानकारों ने बताया कि पिछले 8 साल से इस पुस्तकालय के ताले नहीं खुले हैं और किसी भी व्यक्ति को किताबें पढऩा तो दूर देखने तक नहीं मिली है..? जिस ट्रस्ट की देख-रेख सरकारी अधिकारियों की निगरानी में होती है उन अधिकारियों ने भी पुस्तकालय खुलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और न ही किसी भी ट्रस्टी ने पुस्तकालय को प्रारंभ करवाने की दिशा में कोई पहल की। जिस कारण यह पुस्तकालय अब सिर्फ शोपीस और कमाई का जरिया बनकर रह गया है।
सालों से नहीं हुई ट्रस्ट की बैठक
सरस्वती सदन पुस्तकालय पब्लिक ट्रस्ट की बैठक सालों से नहीं हुई है। कुछ ट्रस्टियों के निधन के बाद रिक्त हुए पदों पर दो नए ट्रस्टियों को दो साल पहले ट्रस्टी बनाने का पत्र सौंपा गया था। उन्हें दो साल बाद भी एक भी बैठक में हिस्सा लेने का मौका नहीं मिल सका। क्योंकि जिम्मेदार पदाधिकारियों ने ट्रस्ट की बैठक ही आहूत नहीं की और बैठक के न होने के बाद भी धड़ाधड़ निर्णय लिए जा रहे हैं। यह निर्णय कितने वैध है और कितने अवैध है यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकेगा। सूत्र बताते हैं कि जिन ट्रस्टियों को रिक्त पदों पर नामांकित किया गया है उनके अनुमोदन भी अनुविभागीय दण्डाधिकारी से नहीं लिए गए हैं। नियमानुसार जब भी ट्रस्ट के रिक्त पदों पर किसी की नियुक्ति की जाती है तो उसका अनुमोदन अनुविभागीय अधिकारी से लेने के बाद भी उसे वैध ट्रस्टी माना जाता है।
उच्च अधिकारियों के आदेश पर हो रही जाँच
सूत्र बताते हैं कि 13 साल से रद्दी की टोकरी में पड़ी शिकायत की जांच अनायास नहीं हुई है यह जांच उच्च अधिकारियों के आदेश पर प्रारंभ की गई है। जिला मुख्यालय के अधिकारियों ने जब इस घोटाले की जांच में कोई रूचि नहीं दिखाई तब संभाग स्तर के अधिकारियों ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और कलेक्टर को पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराने के निर्देश दिए। कलेक्टर ने उच्च अधिकारियों के आदेश का पालन करते हुए दो सदस्यीय जांच टीम का गठन कर दिया गया है। अब यह जांच टीम कब तक अपनी रिपोर्ट सौंपती है इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।
