12/17/2025

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विशेष टिप्पणी : छतरपुर और धक्का प्लेट विकास ?

-प्रतीक खरे
अब तक सुना था कि व्यापार में व्यापारी कदम-कदम पर अपना नफा नुकसान देखता है फिर अपने कदम आगे बढाता है। हमारे छतरपुर के विकास ने भी आकार लेने से पहले नफा नुकसान वाला फार्मूला अंगीकार कर लिया है। यहाँ विकास तब तक अपने पैरो में बेड़िया बांधे खड़ा रहता है जब तक नफा नुकसान और तोल मोल का काम पूरा ना हो जाए। ईश्वर साक्षी है हमारे छतरपुर में विकास की कोई भी योजना वर्षो वर्ष तक लटकने से पहले आकार नहीं लेती, फिर चाहे वह फ्लाई ओवर हो या अन्तर राज्यीय बस स्टेण्ड दोनों स्वीकृत तो हैं पर अभी अधर में लटके है, या ये कहें कि त्रिसंकू बना दिए गए है। पिछले तीन सालो से बस स्टेण्ड के लिए स्थान चयन का काम पूरा नहीं हो सका। इसे कभी सौरा में बनाने की चर्चा होती है तो कभी बगौता में।
किसी शायर ने लिखा है-
“रिम झिम के तराने हैं,
थम थम के बरसते हैं।
आ जाए जो मस्ती में,
तो जम-जम के बरसते हैं।।
इस शायर ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसकी लिखी लाइने छतरपुर में सटीक बैठेगी। क्योंकि यहां विकास एकदम से नहीं थम-थम कर बरसता है। यहाँ धसान जल आवर्धन योजना का पानी धसान नदी से 25 किलोमीटर चलकर छतरपुर तक आने में 25 साल लगते हैं, यहाँ मेडिकल कॉलेज के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी गई पर बनने का नम्बर तब आया जब प्रदेश के 80 फीसदी जिलों में मेडिकल कॉलेज बन चुके। अगर आंदोलन नहीं होता तो शायद छतरपुर प्रदेश का पहला मेडिकल कालेज विहीन जिला होता। फ्लाइओवर के भूमि पूजन वाले पत्थर का रंग मलिन पड़ने लगा है पर अभी तक निर्माण के श्रीगणेश का मुहूर्त नहीं निकला।
लम्बे इन्तजार के बाद विश्वविद्यालय के भवन का काम जैसे-तैसे कछुआ गति से शुरू हो गया। बस स्टेण्ड की सराय को कॉम्पलेक्स में परिवर्तित होने से पहले ही नीव में दफ़न कर दिया गया। रेल लाइन के लिए 1976 में शुरू हुई पहल 10 साल पहले पटरी पर आ सकी। ट्रांसपोर्ट नगर अभी तक व्यवस्थित नहीं हो सका यहाँ की जमीने आज भी नगर पालिका अधिकारियों के लिए कुबेर बनी हुई है फिर भी आशावादी छतरपुर उफ़ नहीं करता। जनप्रतिनिधि अहम् ब्रह्मास्मि यानि मैं ही ब्रम्ह हूँ क़ी भूमिका में हैं। दो लाख से भी अधिक आबदी वाले इस शहर को सालों से एक और कन्या हायर सेकेण्डरी की दरकार है पर कोई आवाज उठाने वाला नहीं है। अगर अपने से पहल कर सरकार स्वीकृत भी कर देगी तब फिर कम से कम पांच साल स्थान चयन के लिए चाहिए। पूछता है छतरपुर आखिर यहां का विकास धक्का प्लेट क्यों है ?
पुछल्ला-
पुरानी बातों को छोड़ भी दें तो ताजा तरीन मामले को ही देख लें। यहाँ रावण क़ी अंतिम क्रिया के लिए एक अदद मैदान तलाशने में भी महीनों लगते हैं जबकि रावण के अंत समय के लिए सिर्फ एक पखवाडा ही शेष बचा है।

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