12/17/2025

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सख्त निर्देश के बाद भी बसों में नहीं लगाए जा रहे पैनिक बटन,जिन बसों में लगे उन्होंने डिवाईस को नहीं कराया रिचार्ज

प्रतीक खरे
छतरपुर । मध्यप्रदेश शासन एवं परिवहन विभाग के सख्त निर्देशों के बाद भी छतरपुर जिले के परिवहन विभाग में पंजीकृत साढ़े 300 यात्री बसों में से आधी बसों में भी अब तक पैनिक बटन और ट्रेकिंग डिवाईस नहीं लगाई जा सकी है। हालांकि जिला परिवहन अधिकारी विक्रम सिंह कंग कहते हैं कि 70 प्रतिशत बसों में पैनिक बटन और ट्रेकिंग डिवाईस लगाई जा चुकी है। इस अति महत्वपूर्ण योजना के प्रति न तो बस मालिक गंभीर दिखाई दे रहे हैं और न हीं परिवहन विभाग की इसमें खास रूचि नजर आ रही है।
क्या है पैनिक बटन
दो वर्ष पहले मध्यप्रदेश शासन ने सभी यात्री बसों में स्वचालित पैनिक बटन अनिवार्य रूप से लगाए जाने के निर्देश दिए थे। इसके लिए जीआरएल सहित करीब 7 कंपनियों को बसों में पैनिक बटन लगाए जाने का कॉन्टेक्ट भी दिया चुका है। प्रत्येक यात्री बस में पैनिक बटन हर सीट पर लगाया जाना अत्यंत आवश्यक है। यह बटन स्वचालित होता है और जैसे ही कोई यात्री आपात स्थित या किसी भी प्रकार की परेशानी के दौरान पैनिक बटन दबाता है तो तुरंत ही कंट्रोल रूम में मैसिज पहुंच जाता है और आधे घण्टे के अन्दर उस यात्री बस के पास मदद पहुंच जाती है। लेकिन देखने में आ रहा है कि छतरपुर जिले में इस महत्वपूर्ण डिवाईस के महत्व को कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है। आरटीओ विक्रम सिंह कंग ने एक खास मुलाकात में स्वीकार किया कि अधिकांश बसों में यह पैनिक बटन तो लगा दिया गया है लेकिन बस मालिक इसे रीचार्ज नहीं कर रहे हैं। जिस कारण बटन होने न होने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने बताया कि जो भी बसें फिटनिस के लिए आती है उनमें अनिवार्यत: यह डिवाईस लगाई जा रही है। उन्होंनेयह भी बताया कि  एक बार डिवाईस लगने के बाद वह ऑनलाईन दिखने लगती है और यदि किसी बस मालिक ने उसे रिचार्ज नहीं कराया तो उसके विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी।
कमाई का जरिया बना पैनिक बटन
वैसे तो परिवहन विभाग यह दावा करता है कि कोई भी बस मालिक खुले बाजार में कहीं से भी ट्रेनिक डिवाईस और पैनिक बटन लगवा सकता है। लेकिन यह खुले बाजार में उपलब्ध ही नहीं है। खुले बाजार में इसकी कीमत लगभग 6 हजार रूपए है जबकि छतरपुर आरटीओ कार्यालय में बैठा एक व्यापारी इसी डिवाईस को साढ़े 12 हजार रूपए से लेकर 15 हजार रूपए तक में लगा रहा है। सवाल यह उठता है कि आखिर यह व्यापारी आरटीओ कार्यालय में किसकी सहमति से बैठा है और लगभग दोगुनी दामों पर डिवाईस लगाए जाने के बाद होने वाली आमदानी का हिस्सा कहां-कहां जाता है।

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