कब्रिस्तान में रखवालों ने ही दुकानें बनाकर बेच दीं, तमाम शिकायतों के बावजूद प्रशासन करता रहा अनदेखी
छतरपुर। पुलिस लाईन रोड पर जिला जेल के पीछे स्थित रियासत कालीन कब्रिस्तान कि रखवाली की जिन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई थी उन्होंने ही वहां कब्जा कर बिना डायवर्सन और बिना निर्माण स्वीकृति के वहां दुकानें खड़ी कर दी। निर्माण कार्य शुरू होने से लगातार मुस्लिम समाज के लोग शिकायतें करते रहे लेकिन इन तमाम शिकायतों के बावजूद प्रशासन अनदेखी करता रहा। जिससे दुकानों का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद अब उन्हें 18 लाख में देकर पांच लाख की रसीद दी जा रही है।
कलेक्टर, एसडीएम, मुख्य नगर पालिका अधिकारी और कोतवाली टीआई तक की गई शिकायतों के मुताबिक मौजा छतरपुर के खसरा नं. 2951 पर वक्फ कब्रिस्तान दर्ज है। इस कब्रिस्तान में सौ दो सौ वर्ष पुरानी कब्रे बनी हैं जिस पर पूर्व में रज़ा हॉल कमेटी और कब्रिस्तान समिति के द्वारा कब्रों को सुरक्षित करने के लिए बाउन्ड्रीबाल भी बनाई गई थी। वर्तमान रज़ा हॉल कमेटी और कब्रिस्तान समिति के द्वारा कब्रों और बाउन्ड्रीबाल को तोडक़र उस पर बिना प्रशासन की मंजूरी के अवैध दुकानों का निर्माण शुरू कर दिया गया था। इल्जाम है कि इस निर्माण कार्य में वक्फ कब्रिस्तान जेल रोड छतरपुर के सदर मोहम्मद मुबीन तनय शेख यासीन निवासी नारायणबाग छतरपुर मुख्य किरदार निभा रहे हैं। मुस्लिम समाज में इससे आक्रोष है। उनका कहना है कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि कब्रो को तोडक़र उस पर निर्माण कार्य किया जाए। मुस्लिम समाज ने मना भी किया लेकिन रज़ा हॉल कमेटी और कब्रिस्तान समिति नहीं मानी।
मुस्लिम समाज ने अनुविभागीय दण्डाधिकारी को 8 जनवरी 2024 को आवेदन भी दिया जिस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। जब एसडीएम ने नहीं सुनी तो समाज के लोग 9 जनवरी को कलेक्टर और अंजुमन इस्लामिया कमेटी के पास पहुंच गए। अंजुमन इस्लामिया कमेटी के सदर सैयद जावेद अली ने भी 12 जनवरी को कलेक्टर से मिलकर मुस्लिम समाज की धार्मिक भावनाओं से वाकिफ कराकर दुकानों का निर्माण रोकने को कहा। फिर भी कलेक्टर चुप रहे तो 20 जनवरी को मुस्लिम समाज के लोग फिर कलेक्टर के पास शिकायतें लेकर जा पहुंचे। तब कलेक्टर ने एसडीएम को एक्शन लेने के लिए निर्देशित कर दिया। एसडीएम ने भी आरआई को तत्काल जांच करने के निर्देश देकर ड्यूटी पूरी कर ली, लेकिन दुकानें लगातार बनती रहीं।
प्रशासन से निराश होकर मुस्लिम समाज ने 22 जनवरी को कोतवाली जाकर टीआई से दुकान निर्माण रुकवाने को कहा। टीआई ने भी राजस्व का मामला बताकर पल्ला झाड़ लिया। इसके महीनेभर बाद 22 फरवरी को नगर पालिका सीएमओ को आवेदन देकर निर्माण पर रोक लगाने की मांग उठाई गई। लेकिन उन्होंने भी कोई कदम उठाने की जहमत नहीं की। नतीजतन आज दुकानें बन कर तैयार हो गई। अब उन्हें मंहगे रेट पर बेचा जा रहा है और रसीद कम की दी जा रही है।
इसी भूमि खसरा नंबर 2951 पर अन्य लोगों द्वारा अवैध कब्जे भी किए गए हैं। जिससे कब्रिस्तान की तत्कालीन मैनेजमेंट कमेटी के सदस्य मो करीम ने जबलपुर हाईकोर्ट में 23 सितंबर 2021 को रिट याचिका क्रमांक 17203/2021 भी लगाई थी। इसमें अभी सुनवाई चल रही है।
ताज्जुब इस बात का है कि जब कोई अतिक्रमण होता है तब प्रशासन उसे क्यों नहीं रोकता। क्या इस से प्रशासन की मिलीभगत के आरोपों को बल नहीं मिलता। जब विवाद के हालात बनते हैं या उच्च स्तर से दबाव पड़ता है तब पूरा लाव लश्कर लेकर प्रशासन चढ़ाई कर देता है। लेकिन निर्माण की अनदेखी करने वाले अफसर तब तक मलाई मार कर रुखसत हो चुके होते हैं।
मसलन महाराजा कालेज के सामने स्थित कब्रिस्तान की भूमि को ही ले लें। यहां भी जिला वक्फ बोर्ड सदर रहे मो सलीम भोलू ने कई दुकानें बगैर किसी परमिशन के बनवा दी थीं और जब बबाल मचा तो प्रशासन को उन्हें ध्वस्त कराना पड़ा था।
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