भ्रष्टाचार उजागर करने पर मिली मौत
-रामकिशोर अग्रवाल
सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ आमजन को मिले इसके लिए सरकार और अधिकारी तो प्रयासरत हैं ही पत्रकार भी सजग प्रहरी की भूमिका निभाते हैं। अपनी इस भूमिका को निभाते हुए पत्रकारों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर के मशहूर पत्रकार मुकेश चंद्राकर भी अपने इसी दायित्व को निभाते हुए बेरहमी से मार डाले गए। हर साल दुनियाभर में ऐसे कई जागरूक पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। हम सिर्फ श्रद्धासुमन अर्पित कर रह जाते हैं। क्या हमारी नियति चुपचाप पत्रकारों को कत्ल होते देखना भर रह गई है। आज मुकेश की हत्या की गई कल हत्यारों के निशाने पर हम भी हो सकते हैं। बहुत हो गया अब हम सब पत्रकारों को ऐसे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बुलंदी से आवाज उठाने का वक्त आ गया है।
नक्सल मामलों में देशभर में पत्रकारिता में चर्चित नाम मुकेश चंद्राकर का गुनाह सिर्फ इतना था कि उन्होंने बीजापुर क्षेत्र में बने गंगालूर रोड में हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार को उजागर किया था। मुकेश चंद्राकर की रिपोर्ट के बाद प्रशासन ने मामले की जांच शुरू कर दी थी। मुकेश ने जिस रोड का भ्रष्टाचार उजागर किया था वह रोड छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अनुसूचित जाति विभाग के प्रदेश महासचिव सुरेश चंद्राकर की कंस्ट्रक्शन कंपनी ने बनाई थी। मुकेश और सुरेश आपस में रिश्तेदार भी थे। मुकेश नए साल के पहले दिन अचानक लापता हो गए थे। बाद में उनका शव सुरेश चंद्राकर के चट्टानपारा इलाके में स्थित भवन के सेप्टिक टैंक में मिला था। हत्यारे इतने शातिर थे कि सेप्टिक टैंक को ऊपर से बंद भी कर दिया था।
बीजापुर सहित बस्तर संभाग में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या से भारी आक्रोश है। वहां के पत्रकार ठेकेदार की संपत्तियों को कुर्क करने और उसके खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग को लेकर आंदोलन पर उतर आए हैं। छतरपुर के पत्रकारों की चेतना भी जागृत हुई है और उन्होंने देश के गृहमंत्री के नाम पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपा है।
वास्तव में पत्रकारिता करना खतरों से खेलने से कम नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों के पत्रकारों को अपना काम बमुश्किल कर पाना पड़ रहा है। छुटभैये नेता से लेकर ठेकेदार, अफसर और कर्मचारी पग पग पर रोड़ा अटकाते हैं और कई बार उन पर हमला कर मौत की नींद सुला देते हैं। इन्हीं खतरों को भांपते हुए मध्य प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ काफी समय से पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग उठाता रहा है लेकिन सरकार इस पर चुप्पी साधे बैठी है। ऐसी विषम परिस्थितियों में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू किया जाना समय का तकाजा है।
