छतरपुर में पहली बार मनाई गई आल्हादेव की जयंती, जो पीढिय़ां पूर्वजों को भूल जाती उनका कोई इतिहास नहीं होता- डॉ. बहादुर सिंह परमार
आल्हादेव का आदर्श जन-जन तक पहुंचाना जरूरी-पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह
आल्हा और छत्रसाल में एक समानता है की दोनों ने 52 युद्ध लड़े-योगेन्द्र प्रताप सिंह
छतरपुर । छतरपुर के एक होटल में वीर सिरोमणि आल्हादेव की जयंती हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाई गई। इस मौके पर शहर के तमाम समाजसेवियों विभिन्न समाजों के प्रतिनिधियों और पत्रकारों को सम्मानित किया गया। संभवता पहली बार छतरपुर में आल्हादेव की जन्म जयंती मनाई गई। इससे पहले ऐसा आयोजन छतरपुर में कभी आयोजित नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह ने पहली बार यह पहल की और बुंदेलखण्ड के वीर सिरोमणि आल्हादेव की जयंती का आयोजन किया। इस मौके पर वरिष्ठ अधिवक्ता योगेन्द्र प्रताप सिंह, साहित्यकार डॉ. बहादुर सिंह परमार आल्हा ऊदल के वंशज रामनरेश वनाफर, शंकर सोनी, बीपी सिंह, पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह मंचासीन रहे। कार्यक्रम का संचालन उपेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भाजपा नेता पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह गुड्डू भैया ने कहा कि आल्हादेव केवल महोबा के वीर योद्धा नहीं है वे छतरपुर सहित पूरे बुंदेलखण्ड के वीर योद्धा है और उनकी वीरता व शौर्य की कहानियां जन-जन तक पहुंचाई जाना बहुत जरूरी है ताकि हमारी आने वाली पीढिय़ों को आल्हादेव जैसे वीर यौद्धाओं के इतिहास के बारे में पूरे जानकारी हो सके। उन्होंने कहा कि लाला हरदौर घर-घर में पूजे जाते हैं पर कभी कोई उनकी जयंती नहीं मनाता। लेकिन अब हम लोगों ने यह तय किया है कि बुंदेलखण्ड के जो भी वीर यौद्धा है हमारे आदर्श पुरूष है उनकी जयंतियां मनाई जाएगी और उनकी शौर्य गाथाएं जन-जन तक पहुंचाई जाएगी।
साहित्यकार डॉ. बहादुर सिंह परमार ने कहा कि जो पीढिय़ा अपने पूर्वजों को भूल जाती है उनका कोई इतिहास नहीं होता। उन्होंने कहा कि वीर आल्हादेव ने अपने शौर्य और पराक्रम से जो मूल्य स्थापित किए हैं वे प्रेरणादायी है। उन्होंने हमेशा गरीब और कमजोर का साथ दिया। पर यह दुर्भाग्य है कि कुछ सलाहकारों की गलत सलाह को उन्होंने समझ नहीं पाया। आज बुंदेलखंड में जो सेरों और आल्हा गायन की परम्परा थीं वह मोबाईल के कारण धीरे-धीरे विलुप्त हो गई। महाराज आल्हादेव की वीर गाथाएं आज भी आलेखित है। उन्हें जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है।
वरिष्ठ अधिवक्ता और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि योगेन्द्र प्रताप सिंह एडव्होकेट हैं कहा कि आल्हादेव शारदा माता के परम् भक्त थे उन्होंने घोर तपस्या कर शारदा माता के साक्षात दर्शन किए और आज भी मैहर माता के मंदिर में जब पुजारी सुबह पट खोलता है तो उसे ताजे फूल अक्षत चढ़े हुए मिलते हैं। बताते हैं कि आज भी आल्हादेव शारदा माता मंदिर में सुबह पूजा करने जाते हैं। उन्होंने कहा कि महाराजा छत्रसाल ने 52 युद्ध लड़े और एक भी युद्ध नहीं हारे। आल्हादेव ने भी 52 युद्ध लड़े और किसी भी युद्ध में हार नहीं देखी। महाराजा छत्रसाल और आल्हादेव में यह बड़ी समानता है। उन्होंने उस कालखण्ड के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला और आल्हादेव के शौर्य को जन-जन तक पहुंचाने की बात कही।
कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित आल्हादेव के वंशज रामनरेश वनाफर जी ने आल्हादेव के सम्पूर्ण इतिहास का वर्णन किया और कहा कि वे चाहते हैं कि सभी जाति और धर्मों के लोग आल्हादेव के इतिहास को जाने क्योंकि वो एक जाति के नहीं थे। उन्होंने सर्वसमाज के लिए काम किया। इसलिए आज इस मंच से सभी समाजों के प्रतिनिधियों को सम्मानित किया जा रहा है।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र अग्रवाल, प्रतीक खरे, शिवेन्द्र शुक्ला, नवनीत जैन, राधेश्याम सोनी, अभिषेक सिंह सेंगर, लोकेश चौरसिया, समाजसेवी गिरजा पाटकर, आनंद शर्मा सहित तमाम समाजों के प्रतिनिधियों को सम्मानित किया गया।
